Wednesday, June 24, 2020

सृष्टि रचना का प्रमाण

      ( सूक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सृष्टि रचना का वर्णन)

प्रभु    प्रेमी आत्माएं प्रथम बार सृष्टि  रचना को पढ़ेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे  दंतकथा  हो परंतु सर्व पवित्र ग्रंथ उसके प्रमाण पढ़कर  दांतो तले उंगली दबा एंगे कि यह   वास्तविक अमृत  ज्ञान यहां छुपा था कृपया   धैर्य के  साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृतवाणी का सुरक्षित रखें आपकी 101 पीढ़ी तक काम आएगा पवित्र आत्मा कृपा सत्यनारायण अविनाशी प्रभु सत्पुरुष द्वारा रचित सृष्टि रचना का    वास्तविक ज्ञान पढ़ें 

, आत्माएं काल की जाल में कैसे फंसी, 



विशेष:- जब काल निरंजन तब कर रहा था हम सभी आत्माएं जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्राह्मणों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गए तथा अंतरात्मा से इसे चाहने लगी अपने सुख  दाई प्रभु सत्य पुरुष को जो खो गए जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आ सकती क्षर पुरुष नहीं हटी
यही प्रभाव आज भी काल सृष्टि के विद्यमान है जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टोरी के बनावटी  आदतों पर तथा रोजगार उद्देश्य से कर रहे हैं भूमिका प्रति आसक्त हो जाते हैं रोकने से नहीं रुकते यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखने पर उस नादान बच्चों के भीड़ के और दर्शन करने के लिए बहुत संख्या में एकत्रित हो जाते हैं
लेना एक न देने दो ' रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं , नौजवान बच्चे लुट रहे हैं । माता - पिता कितना ही समझाएं किन्तु बच्चे नहीं मानते । कहीं न कहीं , कभी न कभी , लुक - छिप कर जाते ही रहते हैं । पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ( कबीर प्रभु ) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहते हो ? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है , मुझे अलग से द्वीप प्रदान करने की कृपा करें । हक्का कबीर ( सत् कबीर ) ने उसे 21 ( इक्कीस ) ब्रह्मण्ड प्रदान कर दिए । कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इस में कुछ रचना करनी चाहिए । खाली ब्रह्मण्ड ( प्लाट किस काम के । यह विचार कर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव ( कबीर प्रभु ) से रचना सामग्री की याचना की । सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए , जिससे ब्रह्म ( ज्योति निरंजन ) ने अपने ब्रह्मण्डों में कुछ रचना की । फिर सोचा कि इसमें जीव भी होने चाहिए , अकेले का दिल नहीं लगता । यह विचार करके 64 ( चौसठ ) युग तक फिर तप किया । पूर्ण परमात्मा कविर् देव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो , मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा । तब सतपुरुष कविरग्नि ( कबीर परमेश्वर ) ने कहा कि ब्रह्म तेरे तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ , परन्तु मेरी आत्माओं को किसी भी जप - तप साधना के प्रतिफल रूप में नहीं दे सकता । , यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है । युवा कविर् ( समर्थ कबीर ) के वचन सुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया । हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे । हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए ज्योति निरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं । क्या आप मेरे साथ चलोगे हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्मण्डों में परेशान हैं , कहा कि हम तैयार यदि पिता जी आज्ञा दें तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् ( समर्थ कबीर प्रभु ) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही । तब कविरग्नि ( कबीर परमेश्वर ) कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा । क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष ( कविरमितौजा ) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए । सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे । अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई । किसी ने स्वीकृति नहीं दी । बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा । तत्पश्चात् हंस आत्मा ने साहरा किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ । फिर तो उसकी देखा - देखी ( जो आज काल ( ब्रह्म ) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी । परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ । जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा । ज्योति निरंज अपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया । उस समय तक यह इक्कीस  ब्रह्मांड सतलोक में ही थेतत् पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को ( जिन्होंने ज्योति निरंजन ( ब्रह्म ) के साथ जाने की सहमति दी थी ) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा ( आदि माया / प्रकृति देवी / दुर्गा ) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना । पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ( कबीर साहेब ) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया । सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की तथा इसको पिता जी ने वचन शक्ति प्रदान की है , आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी । यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया । युवा होने के कारण लड़की का रंग - रूप निखरा हुआ था । ब्रह्म के अन्दर विषय - वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गति विधि प्रारम्भ की । तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है । आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी । आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो । आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ । आप मेरे बड़े भाई हो , बहन - भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा । परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री ( भग ) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी । उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की । उसी समय कविर्देव ( कविर् देव ) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ' काल ' होगा । तेरे तथा तेरे इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहने व प्राणियों जन्म - मृत्यु सदा होते रहेंगे ।इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा । आप दोनों को इक्कीस ब्रह्मण्ड सहित निष्कासित किया जाता है । इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्मण्ड विमान की तरह चल पड़े । सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस ( एक कोस लगभग 3 कि . मी . का होता है ) की दूरी पर आकर रूक गए । विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है 1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है , जैसे सतपुरुष , अकालपुरुष , शब्द स्वरूपी राम , परमेश्वर , परम अक्षर ब्रह्म / पुरुष आदि । यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है । 2. परब्रह्म जिसे " अक्षर पुरुष " तथा " ईश्वर " भी कहा जाता है । यह वास्तव में अविनाशी नहीं है । यह सात संख ब्रह्मण्डों का स्वामी है । 3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन , काल , कैल , ईश , क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है , जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है । अब आगे इसी ब्रह्म ( काल ) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा , जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव । ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म ( क्षर पुरुष ) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति ( दुर्गा ) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है । उनके नाम भी ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव ही रखता है । जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों ( पृथ्वी लोक , स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक ) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री ( स्वामी ) है । इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है । इसी ब्रह्म ( काल ) को सदाशिव , महाशिव , महाविष्णु भी कहा है । श्री विष्णु पुराण में प्रमाण : - चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा : - जिस अजन्मा , सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि , मध्य , अन्त , स्वरूप , स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते ( श्लोक 83 ) 

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