Thursday, July 2, 2020

कंकाली ऊतक विकीपीडिया

ककाली ऊतक  :-


ऊतक एक प्रकार का संयोजी ऊतक है , 
जो पृष्ठवंशीय जीवों ( Chordates ) का शारीरिक ढाँचा बनाता है
 तथा उनके शरीर को आकृति तथा मजबूती प्रदान करता है । अस्थि ऊतक की संरचना - यह एक ठोस , कठोर एवं मजबूत संयोजी ऊतक है 

। इसका मैट्रिक्स ओसीन नामक से बना होता है । इसके मैट्रिक्स

 में और भी कई प्रकार के प्रोटीन पाए जाते हैं ।

 मैट्रिक्स में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के कार्बोनेट्स और फॉस्फेट्स भी पाए जाते हैं ।

 निम्न श्रेणी के पृष्ठवंशियों में मैट्रिक्स अस्थि मज्जा के चारों ओर अभिकेन्द्रीय छल्लों में होता है , 

जिन्हें लेमीली कहते हैं । अस्थि कोशिकाएँ ऑस्टियोसाइट्स कहलाती हैं । ये लेमीली के बीच - बीच में स्थित गर्तिकाओं में पाई जाती हैं जो शाखान्वित होती हैं तथा केनालीकुली कहलाती हैं । अस्थि मज्जा मुख्यत : एडीपोज ऊतक तथा रक्त वाहिनियों का बना होता है । 

ऑस्टियोब्लास्ट मैट्रिक्स तथा अस्थि कोशिकाओं का निर्माण करते हैं जिन्हें ऑस्टियोप्लास्टिक सेल भी कहते हैं । 

लम्बी अस्थियों में ऑस्टियोब्लास्ट की एक पर्त अस्थि मज्जा की 

बाहरी सतह पर तथा दूसरी पेरीऑस्टियम की भीतरी सतह पर पेरीऑस्टियम अस्थि के चारों ओर कोलेजन संयोजी की एक मोटी पर्त होती है ।

 हैवर्सियन तंत्र स्तनी वर्ग की हड्डी की संरचना की विशेषता है । केल्सीफाइड मैट्रिक्स अस्थि मज्जा के चारों ओर अभिकेन्द्रीय छल्लों के रूप में नहीं होता ।

 अस्थि के कार्य 

1. अस्थि कशेरुक जन्तुओं के शरीर का ढाँचा

 2.शरीर को निश्चित आकृति प्रदान करती है तथा सुदृढ़ बनाती 
है । 

3. पेशियों को जुड़ने के लिए आधार प्रदान करती है 4. शरीर के कोमल अंगों की रक्षा करती है ।

 5. अंगों के संचालन में सहायता करती है । चित्र 7-25 
. मेढक के अस्थि की अनुप्रस्थ काट ( T.S. ) | 

6. रुधिर कोशिकाओं का निर्माण करती है ।

Tuesday, June 30, 2020

भक्ति ना करने से हानि का विवरण

यह दम टूटै पिण्डा फूटै , हो लेखा दरगाह माही ।                  उस दरगाह में मार पड़ेगी , जम पकड़ेंगे बांही ।।                 

नर - नारायण देहि पाय कर , फेर चौरासी जांही ।                उस दिन की मोहे डरनी लागे , लज्जा रह के नाही ।।            

जा सतगुरू की मैं बलिहारी , जो जन्म मरण मिटाहीं ।        कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला , मसलित एक ठहराहीं l

बाँध पीजरी आगै धर लिया , मरघट कूँ ले जाहीं ।।              अग्नि लगा दिया जब लम्बा , फूंक दिया उस ठाहीं ।            पुराण उठा फिर पण्डित आए , पीछे गरूड पढाहींl l



भावार्थ : -
             यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाएंगे ।   उस दिन यह शरीर  रूपी  पिण्ड छूट जाएगा ।  फिर     परमात्मा के दरबार में पाप - पुण्यों का हिसाव होगा ।

भक्ति न करने वाले या शास्त्रविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाएंगे , चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो , उसकी पिटाई की जाएगी । सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे ।

उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे । सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था । सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल व्यान किया कर रहे हैं कि : - हे मानव ! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा . के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है ।


अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला । इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए।

ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण . फिर चौरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है , धिक्कार है तेरे मानव जीवन को ! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है , डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं । मैं तो भक्ति करते - करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए ।
आप तो भक्ति ही नहीं करते । यदि करते हो तो शास्त्रविरूद्ध कर रहे हो । तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म - मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे , समाप्त कर दे ।

 जो सत्य भक्ति नहीं करते , उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात् । आस - पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं ।

फिर सबकी एक ही मसलति अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ । ( उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूंक देते हैं , लाठी या जैली की खोद ( ठोकर ) मार - मारकर छाती तोड़ते हैं ।
 सम्पूर्ण शरीर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले को जला देते हैं । जो कुछ भी जेब में होता है , उसको निकाल लेते हैं ।

फिर गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं । ) . तत्वज्ञान ( सूक्ष्मवेद ) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीय चला गया । परमात्मा के दरबार में उसका हिसाव होगा ।
              

Wednesday, June 24, 2020

राधा स्वामी तथा डेरा सच्चा सौदा सिरसा पंथा के गुरुओं को मोक्ष प्राप्ति नहीं हुई sant rampal ji maharaj

राधा स्वामी तथा डेरा सच्चा सौदा सिरसा पंथ के गुरूओं को मोक्ष प्राप्ति नहीं हुई । " पुस्तक “ सद्गुरू के परमार्थी करिश्मों के वृत्तांत " पृष्ठ 30 पर श्री खेमामल जी ( बेपरवाह मस्ताना जी ) ने कहा " श्री सावन सिंह जी ( मेरे गुरू जी ) ने मेरे शरीर में ( सन् 1948 से 1960 तक ) 12 वर्ष ( प्रेत की तरह ) प्रवेश करके काम किया है । अप्रैल 1960 को दिल्ली में उसी समय संगत को सम्बोधित करते हुए श्री खेमामल जी ( बेपरवाह मस्ताना जी ) ने आगे कहा कि मैं श्री सतनाम सिंह ( जो उनके पश्चात् डेरा सच्चा सौदा सिरसा की गद्दी पर विराजमान हुए ) के शरीर ( बॉडी ) में ( प्रेत की तरह ) प्रवेश करके नाम दिया विवेचन : - श्री सावन सिंह जी ने श्री खेमामल जी ( बेपरवाह मस्ताना जी ) को नाम दान करने का आदेश नहीं दिया था । यह आप जी को पूर्वोक्त प्रकरण में स्पष्ट कर दिया है । श्री खेमामल जी आगे किसी को भी नाम दान की आज्ञा करते रहो । उसका कोई लाभ नहीं । विशेष बात यह है कि यह सच्चा सौदा पंथ उर्फ " धन - धन सतगुरू तेरा ही आसरा ' ' पंथ श्री शिवदयाल सिंह ( राधास्वामी आगरा वाले ) की शाखा है । श्री शिवदयाल सिंह स्वयं प्रेत बन कर अपनी शिष्या " बुक्की ' में प्रवेश करके शंका समाधान किया करते थे । कृपया पढ़ें फोटोकापी पुस्तक " जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज " जिसके लेखक हैं श्री प्रताप सिंह सेठ ( जो श्री शिवदयाल सिंह जी के छोटे भाई थे ) श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में लिखा है कि " जो शास्त्र विधि अनुसार साधना नहीं करते , जो मनमाना आचरण करते हैं उनको किसी प्रकार का भी लाभ प्राप्त नहीं होता । इसी के परिणामस्वरूप इस परम्परा में सर्व भूत बनते चले आ रहे हैं । श्री खेमामल जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि मेरे शरीर में मेरे गुरू श्री सावन सिंह जी प्रवेश हुए और मैं सतनाम सिंह जी के शरीर में प्रवेश होकर नाम - शब्द दिया करूँगा । डेरा सच्चा सौदा सिरसा प्रकाशित पुस्तक “ सतगुरु के परमार्थी करिश्मों के वृतान्त ( पहला भाग ) पृष्ठ - 56 पर लिखा है कि श्री शाहमस्ताना जी ( जो इंजैक्शन रियेक्शन से मृत्यु को प्राप्त हुआ था । प्रमाण पृष्ठ 31 पर ) ही श्री गुरमीत सिंह जी के रूप में जन्में हैं । जो वर्तमान में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के गद्दीनसीन हैं ।विचार करें : - श्री शाहमस्ताना जी का भी पुनर्जन्म हुआ है तो मोक्ष नहीं हुआ यह कहें कि हंसों को तारने के लिए आए है । वह भी उचित नहीं । क्योंकि इनकी साधना शास्त्रविरुद्ध है तथा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक में प्रमाण है कि तत्वदी संत से ज्ञान प्राप्त करके सत्य साधना करने शाहमस्ताना जी का मोक्ष नहीं हुआ । हो सकता है उस पुण्यात्मा की पश्चात् फिर लौटकर कभी संसार में नहीं आते । इससे सिद्ध हुआ कि श्री वाले साधक परमेश्वर के उस परम धाम को प्राप्त हो जाते है , जहा जाने के भक्ति कमाई बची हो उसको अब राज सुख भाग कर नष्ट कर जाएगा । भक्तों हरि आये हरियाणे नूं 72 को तारने की बजाय उनका जीवन नाश कर जायेंगे । डेरे की स्थापना 2 अप्रैल 1949 को श्री खेमामल जी ने की । श्री खेमामल जी ( डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक ) की मृत्यु सन् 1960 में ( ग्यारह वर्ष पश्चात् ) इंजैक्शन रियैक्शन से हुई । प्रमाण पुस्तक “ सतगुरु के परमार्थी करिश्मों का वृतांत " ( भाग - पहला ) पृष्ठ 31-32 पर । उसके दो शिष्य गद्दी के दावेदार थे । 1. श्री सतनाम सिंह जी तथा 2. मनेजर साहब । संगत ने कई दिन तक मिटिंग करके श्री सतनाम सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा सिरसा की गद्दी पर विराजमान कर दिया । मनेजर साहेब ने क्षुब्ध होकर गाँव - जगमाल वाली में स्वयं ही डेरा बनाकर नाम दान प्रारम्भ कर दिया । पाठको ! यह राधास्वामी पंथ , डेरा सच्चा सौदा सिरसा तथा सच्चा सौदा जगमाल वाली , गंगवा गांव में भी श्री खेमामल जी के बागी शिष्य छ : सो मस्ताना ने डेरा बना रखा हैं तथा जय गुरूदेव पंथ मथुरा वाला तथा श्री तारा चन्द जी का दिनौंद गाँव वाला राधास्वामी डेरा तथा डेरा बाबा जयमल सिंह व्यास वाला तथा कृपाल सिंह व ठाकुर सिंह वाला राधास्वामी पंथ सबका सब सत्य मार्ग से भटके हैं । हम सर्व से प्रार्थना करते हैं कि आप पुनः विचार करें । श्रद्धालुओं ! काल का फैलाया जाल है । इस से बचों तथा सन्त रामपाल जी महाराज के पास आकर नाम दान लो तथा अपना कल्याण कराओं । राधास्वामी पंथ , जयगुरूदेव पंथ तथा सच्चा सौदा सिरसा व जगमाल वाली पंथों में श्री शिवदयाल सिंह के विचारों को आधार बना कर सत्संग सुनाया जाता हैं । श्री शिवदयाल सिंह जी इन्हीं पांच नामों ( रंरकार , औंकार , ज्योति निरंजन , सोहं तथा सत्यनाम ) का जाप करते थे । वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके और प्रेत योनी को प्राप्त होकर अपनी शिष्या बुकी में प्रवेश होकर अपने शिष्यों की शंका का समाधान करते थे । जिस पंथ का प्रर्वतक ही अधोगति को प्राप्त हुआ हो तो अनुयाईयों क्या बनेगा ? सीधा सा उत्तर है , वही जो राधास्वामी पंथ के मुखिया श्री शिवदयाल सिंह राधास्वामी का हुआ । देखें फोटो कापी “ जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज " के पृष्ठ 78 से 81 की । " यह उपरोक्त जन्म पत्री राधास्वामी पंथ तथा उसकी शाखाओं की है : समझदार को संकेत ही बहुत होता है । 2020/06/24 11:00

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार वह महापुरुष कौन न है जानिए इस वेबसाइट पर


1.इंग्लैण्ड के ज्योतिषी ' कीरो ' ने सन् 1925 में लिखी पुस्तक में भविष्यवाणी की है , बीसवीं सदी अर्थात् सन् 2000 ई . के उत्तरार्द्ध में ( सन् 1950 के पश्चात् उत्पन्न सन्त ) ही विश्व में एक नई सभ्यता ' लाएगा जो सम्पूर्ण विश्व में फैल जावेगी । भारत का वह एक व्यक्ति सारे संसार में ज्ञानक्रांति ला देगा । 2. भविष्यवक्ता " श्री वेजीलेटिन " के अनुसार 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में , विश्व में आपसी प्रेम का अभाव , मानवता का हास , माया संग्रह की दौड़ , लूट व राज नेताओं का अन्यायी हो जाना आदि -२ बहुत से उत्पात देखने को मिलेगें । परन्तु भारत से उत्पन्न हुई शांति भातृत्व भाव पर आधारित नई सभ्यता , संसार में - देश , प्रांत और जाति की सीमायें तोड़कर विश्वभर में अमन व चैन उत्पन्न करेगी । 3. अमेरिका की महिला भविष्यवक्ता " जीन डिक्सन " के अनुसार 20 वीं सदी के अंत से पहले विश्व में एक घोर हाहाकार तथा मानवता का संहार होगा । वैचारिक के बाद आध्यात्मिकता पर आधारित एक नई सभ्यता सम्भवतः भारत के ग्रामीण परिवार के व्यक्ति के नेतृत्व में जमेगी और संसार से युद्ध को सदा - सदा के लिए विदा कर देगी । 4. अमेरिका के " श्री एण्डरसन " के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले या 21 वीं सदी के प्रथम दशक में विश्व में असभ्यता का नंगा तांडव होगा । इस बीच भारत के एक देहात का एक धार्मिक व्यक्ति , एक मानव , एक भाषा और एक झण्डा की रूपरेखा का संविधान बनाकर संसार को सदाचार , उदारता , मानवीय सेवा व प्यार का सबक देगा । यह मसीहा सन् 1999 तक विश्व में आगे आने वाले हजारों वर्षों के लिए धर्म व सुख - शांति भर देगा । 5. हॉलैण्ड के भविष्यदृष्टा “ श्री गेरार्ड क्राइसे " के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले या 21 वीं सदी के प्रथम दशक में भयंकर युद्ध के कारण कई देशों का अस्तित्व ही मिट जावेगा । परन्तु भारत का एक महापुरूष सम्पूर्ण विश्व को मानवता के एक सूत्र में बांध देगा व हिंसा , फूट - दुराचार , कपट आदि संसार से सदा के लिए मिटा देगा । 6. अमेरिका के भविष्वक्ता " श्री चार्ल्स क्लार्क " के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले एक देश विज्ञान की उन्नति में सब देशों को पछाड़ देगा परन्तु भारत की प्रतिष्ठा विशेषकर इसके धर्म और दर्शन से होगी , जिसे पूरा विश्व अपना लेगा , यह धार्मिक क्रांति 21 वीं सदी के प्रथम दशक में सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करेगी और मानव को आध्यात्मिकता पर विवश कर देगी । 7. हंगरी की महिला ज्योतिषी " बोरिस्का " के अनुसार सन् 2000 ई . से पहले - पहले उग्र परिस्थितियों हत्या और लूटमार के बीच ही मानवीय सद्गुणों का विकास एक भारतीय फरिश्ते के द्वारा भौतिकवाद से सफल संघर्ष के फलस्वरूप होगा , जो चिरस्थाई रहेगा , इस आध्यात्मिक व्यक्ति के बड़ी संख्या में छोटे - छोटे लोग ही अनुयायी बनकर भौतिकवाद को आध्यात्मिकता में बदल  देंगे8. फ्रांस के डॉ . जूलर्वन के अनुसार सन् 1990 के बाद योरोपीय देश भारत की धार्मिक सभ्यता की ओर तेजी से झूकेंगे । सन् 2000 तक विश्व की आबादी 640 करोड़ के आस - पास होगी । भारत से उठी ज्ञान की धार्मिक क्रांति नास्तिकता का नाश करके आँधी तूफान की तरह सम्पूर्ण विश्व को ढक लेगी । उस भारतीय महान आध्यात्मिक व्यक्ति के अनुयाई देखते - देखते एक संस्था के रूप में ' आत्मशक्ति ' से सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव जमा लेंगे । 9. फ्रांस के " नास्त्रेदमस " के अनुसार विश्व भर में सैनिक क्रांतियों के बाद थोड़े से ही अच्छे लोग संसार को अच्छा बनाएंगे । जिनका महान् धर्मनिष्ठ विश्वविख्यात नेता 20 वीं सदी के अन्त और 21 वीं सदी की शुरूआत में किसी पूर्वी देश से जन्म लेकर भ्रातृवृत्ति व सौजन्यता द्वारा सारे विश्व को सूत्र में बांध देगा । ( नास्त्रेदमस शतक 1 श्लोक 50 में प्रमाणित कर रहा है ) तीन ओर से सागर से घिरे द्वीप में उस महान संत का जन्म होगा । उस समय तत्व ज्ञान के अभाव से अज्ञान अंधेरा होगा । नैतिकता का पतन होकर , हाहाकार मचा होगा । वह शायरन ( धार्मिक नेता ) गुरुवर अर्थात् गुरुजी को वर ( श्रेष्ठ ) मान कर अपनी साधना करेगा तथा करवाएगा । वह धार्मिक नेता ( तत्वदर्शी सन्त ) अपने धर्म बल अर्थात् भक्ति की शक्ति से तथा . तत्वज्ञान द्वारा सर्व राष्ट्रों को नतमस्तक करेगा । एशिया में उसे रोकना अर्थात् उस के प्रचार में बाधा करना पागलपन होगा अधिक जानकारी के लिए देखिए साधना टीवी 7:30 बजे और हमारा संपर्क सूत्र है 9416296541,9416296397,9813844747

सृष्टि रचना का प्रमाण

      ( सूक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सृष्टि रचना का वर्णन)

प्रभु    प्रेमी आत्माएं प्रथम बार सृष्टि  रचना को पढ़ेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे  दंतकथा  हो परंतु सर्व पवित्र ग्रंथ उसके प्रमाण पढ़कर  दांतो तले उंगली दबा एंगे कि यह   वास्तविक अमृत  ज्ञान यहां छुपा था कृपया   धैर्य के  साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृतवाणी का सुरक्षित रखें आपकी 101 पीढ़ी तक काम आएगा पवित्र आत्मा कृपा सत्यनारायण अविनाशी प्रभु सत्पुरुष द्वारा रचित सृष्टि रचना का    वास्तविक ज्ञान पढ़ें 

, आत्माएं काल की जाल में कैसे फंसी, 



विशेष:- जब काल निरंजन तब कर रहा था हम सभी आत्माएं जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्राह्मणों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गए तथा अंतरात्मा से इसे चाहने लगी अपने सुख  दाई प्रभु सत्य पुरुष को जो खो गए जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आ सकती क्षर पुरुष नहीं हटी
यही प्रभाव आज भी काल सृष्टि के विद्यमान है जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टोरी के बनावटी  आदतों पर तथा रोजगार उद्देश्य से कर रहे हैं भूमिका प्रति आसक्त हो जाते हैं रोकने से नहीं रुकते यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखने पर उस नादान बच्चों के भीड़ के और दर्शन करने के लिए बहुत संख्या में एकत्रित हो जाते हैं
लेना एक न देने दो ' रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं , नौजवान बच्चे लुट रहे हैं । माता - पिता कितना ही समझाएं किन्तु बच्चे नहीं मानते । कहीं न कहीं , कभी न कभी , लुक - छिप कर जाते ही रहते हैं । पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ( कबीर प्रभु ) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहते हो ? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है , मुझे अलग से द्वीप प्रदान करने की कृपा करें । हक्का कबीर ( सत् कबीर ) ने उसे 21 ( इक्कीस ) ब्रह्मण्ड प्रदान कर दिए । कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इस में कुछ रचना करनी चाहिए । खाली ब्रह्मण्ड ( प्लाट किस काम के । यह विचार कर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव ( कबीर प्रभु ) से रचना सामग्री की याचना की । सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए , जिससे ब्रह्म ( ज्योति निरंजन ) ने अपने ब्रह्मण्डों में कुछ रचना की । फिर सोचा कि इसमें जीव भी होने चाहिए , अकेले का दिल नहीं लगता । यह विचार करके 64 ( चौसठ ) युग तक फिर तप किया । पूर्ण परमात्मा कविर् देव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो , मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा । तब सतपुरुष कविरग्नि ( कबीर परमेश्वर ) ने कहा कि ब्रह्म तेरे तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ , परन्तु मेरी आत्माओं को किसी भी जप - तप साधना के प्रतिफल रूप में नहीं दे सकता । , यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है । युवा कविर् ( समर्थ कबीर ) के वचन सुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया । हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे । हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए ज्योति निरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं । क्या आप मेरे साथ चलोगे हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्मण्डों में परेशान हैं , कहा कि हम तैयार यदि पिता जी आज्ञा दें तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् ( समर्थ कबीर प्रभु ) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही । तब कविरग्नि ( कबीर परमेश्वर ) कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा । क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष ( कविरमितौजा ) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए । सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे । अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई । किसी ने स्वीकृति नहीं दी । बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा । तत्पश्चात् हंस आत्मा ने साहरा किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ । फिर तो उसकी देखा - देखी ( जो आज काल ( ब्रह्म ) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी । परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ । जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा । ज्योति निरंज अपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया । उस समय तक यह इक्कीस  ब्रह्मांड सतलोक में ही थेतत् पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को ( जिन्होंने ज्योति निरंजन ( ब्रह्म ) के साथ जाने की सहमति दी थी ) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा ( आदि माया / प्रकृति देवी / दुर्गा ) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना । पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ( कबीर साहेब ) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया । सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की तथा इसको पिता जी ने वचन शक्ति प्रदान की है , आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी । यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया । युवा होने के कारण लड़की का रंग - रूप निखरा हुआ था । ब्रह्म के अन्दर विषय - वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गति विधि प्रारम्भ की । तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है । आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी । आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो । आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ । आप मेरे बड़े भाई हो , बहन - भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा । परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री ( भग ) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी । उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की । उसी समय कविर्देव ( कविर् देव ) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ' काल ' होगा । तेरे तथा तेरे इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहने व प्राणियों जन्म - मृत्यु सदा होते रहेंगे ।इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा । आप दोनों को इक्कीस ब्रह्मण्ड सहित निष्कासित किया जाता है । इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्मण्ड विमान की तरह चल पड़े । सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस ( एक कोस लगभग 3 कि . मी . का होता है ) की दूरी पर आकर रूक गए । विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है 1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है , जैसे सतपुरुष , अकालपुरुष , शब्द स्वरूपी राम , परमेश्वर , परम अक्षर ब्रह्म / पुरुष आदि । यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है । 2. परब्रह्म जिसे " अक्षर पुरुष " तथा " ईश्वर " भी कहा जाता है । यह वास्तव में अविनाशी नहीं है । यह सात संख ब्रह्मण्डों का स्वामी है । 3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन , काल , कैल , ईश , क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है , जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है । अब आगे इसी ब्रह्म ( काल ) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा , जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव । ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म ( क्षर पुरुष ) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति ( दुर्गा ) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है । उनके नाम भी ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव ही रखता है । जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों ( पृथ्वी लोक , स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक ) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री ( स्वामी ) है । इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है । इसी ब्रह्म ( काल ) को सदाशिव , महाशिव , महाविष्णु भी कहा है । श्री विष्णु पुराण में प्रमाण : - चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा : - जिस अजन्मा , सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि , मध्य , अन्त , स्वरूप , स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते ( श्लोक 83 )